कागज की नोट
कागज के नोट
चन्दा का ध्यान अचानक कैलेंडर की तरफ गया तो तारीख देख वो परेशान सी हो उठी थी। मायके में बड़े भैया की बेटी रचना के विवाह में अब बमुश्किल दस दिन बचे थे।
सारे रिश्तेदार जमा होने वाले थे। वो तो अपनी पुरानी साड़ियों को ड्राई क्लीन करवा कर विवाह में काम चला लेगी। पति नरेश के पास भी दो तीन शर्ट पेंट है जो उसने पिछली दीवाली में बनवाये थे। पर दोनो बच्चों के लिए तो नए कपड़े लेने ही पड़ेंगे। कम से कम चार पांच हजार का गिफ्ट भी देना होगा आखिर वो दुल्हन की बुआ थी। स्लीपर डब्बे में आने जाने पर भी टिकट खर्चा तीन हजार लग ही जायेगा।
अगर नरेश ने ऑफिस से एडवांस लिया तो महीने भर घर का खर्चा वो कैसे चलाएगी.सोचते सोचते चन्दा बेहद चिंतित हो गयी थीं।
पांच भाईयों की इकलौती बहन थी चन्दा। विवाह के बाद से ससुराल में चन्दा ने तंगी और तकलीफ ही देखी थी। नरेश की छोटी सी नोकरी में गुजारा मुश्किल होने लगा तो उसने सिलाई कढ़ाई का काम शुरू कर लिया था। सारा दिन घर का काम, बच्चों की देखभाल और सिलाई कढ़ाई ने चन्दा को उम्र से पहले ही उम्रदराज बना दिया था।
मायके में भाईयों ने बिजनेस में खूब तरक्की की थी। सब चन्दा को लेकर फिक्रमंद भी रहते थे। पर स्वाभिमानी चन्दा ने कभी भी मायके की मदद को स्वीकार नहीं किया था। समस्याओं में उलझी अपनी जिंदगी को खुद ही सुलझाना जैसे उसका जुनून था।
मायके में विवाह का उत्सव अपने अंतिम चरण में था। दुल्हन की विदाई के बाद एक एक कर मेहमान विदा हो रहे थे।
चन्दा भी अगले दिन विदा होने वाली थी। नरेश की इस महीने की सैलरी और उसके पास बचे सारे पैसे खत्म हो गए थे। उसे घर पहुंचकर घर का किराया,दूध वाले का बिल,स्कूल की फीस जमा करने का तनाव अंदर ही अंदर खाये जा रहा था। वो चुपचाप एक कमरे में जाकर सो गई थी।
नींद में उसे अपने माथे पर किसी स्नेह भरें हाथ का स्पर्श मिला तो अचानक से उसकी नींद खुल गयी थी। बड़ी भाभी ननद के माथे को सहला रही थी।
"भाभी आप?"
"हां दीदी... बिटिया की विदाई तक तो आपसे ठीक से बात करने की फुर्सत तक नही मिली। अभी सबलोग कुछ फ्री हुए है।"
चन्दा उठकर बैठ गयी थी।
"दीदी मैं जानती हूं कि आप अपनी तकलीफ किसी से नही बांटती हो न आप किसी तरह के सहयोग को स्वीकार करती हो। पर कुछ छुपा नही है दीदी। ये घर भी आपका है। मैं तो बाहर से आयी हूँ पर आपने तो यहां जन्म लिया है।"
"भाभी मुझे पता है कि आप सभी को मेरी चिंता रहती है।"
"बस फिर अब कुछ मत बोलना दीदी, कुछ रुपये लायी हूँ आप इन्हें रख लो। हाथ मे कुछ पैसे रहेंगे तो काम आएंगे।" बोलते हुए भाभी ने ननद की तरफ पांच सौ के नोटो की एक गड्डी बढ़ा दी थी।
भाभी के हाथों से नोटो का पैकेट लेते हुए चन्दा मुस्कुरा रही थी
"भाभी जानती हो पैसों की तंगी एकदिन दूर हो सकती है पर जो मान सम्मान और प्रेम मुझे मायके में मिलता है वो एकबार खत्म हो गया तो फिर कभी नही लौटेगा। ये पैसे मुझे बहुत महंगे पड़ सकते है भाभी। इन्हें लेने के बाद मैं किसी से नजरें मिलाकर बात नही कर पाऊंगी गरीबी से लड़ना सिखाया है बाबुजी और मां ने पर उन्होंने आत्मसम्मान खोकर जीना नही सिखाया है भाभी।"
भावुक होती चन्दा ने भाभी के कंधे पर सर रखते हुए रुपयों की गड्डी वापस भाभी के हाथों में रख दी थी।
ननद और भाभी दोनो की आंखों से टपके आंसू की बूंदे कागज के नोट पर पड़ी तो कागज गल कर सिकुड़ सा गया था पर रिश्तों में एक नई ताजगी खिल उठी थी।
Babita patel
16-Apr-2024 06:06 AM
Fantastic
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Mohammed urooj khan
15-Apr-2024 11:49 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Abhinav ji
13-Apr-2024 01:31 PM
Nice👌
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